चुनाव से संसद पर असर क्यों? जानिए कैसे सिकुड़ते जा रहे हैं सत्र
चुनाव से संसद पर असर क्यों? जानिए कैसे सिकुड़ते जा रहे हैं सत्र
किसी एक राज्य में चुनाव की वजह से संसद के सत्र से समझौता क्यों? संसद के शीतकालीन सत्र को लेकर ऐसे ही सवाल उठ रहे हैं. गुजरात चुनाव की वजह से संसद का शीतकालीन सत्र ना सिर्फ देर से शुरू होगा बल्कि इसकी अवधि भी छोटी होगी. शीतकालीन सत्र इस बार 15 दिसंबर से शुरू होकर 5 जनवरी तक चलेगा. सत्र देरी से शुरू होने के मुद्दे को विपक्षी दलों ने जोरशोर से उठाया भी. कांग्रेस ने तो इस बारे में राष्ट्रपति को ज्ञापन तक भेजा. कांग्रेस की ओर से ये भी कहा गया कि गुजरात चुनाव के दौरान सरकार कई मुद्दों पर जवाब देने से बचना चाहती है इसलिए शीतकालीन सत्र बुलाने में देरी कर रही है.
ये तो हो गई शीतकालीन सत्र की बात, लेकिन अगर आप संसद की कार्यवाही के रिकॉर्ड को बारीकी से देखें तो सामने आएगा कि संसद की बैठकों के दिन लगातार कम होते जा रहे हैं. मौजूदा साल 2017 में संसद महज 57 दिन तक ही चलेगी. अभी तक इस साल संसद 48 दिन तक चली है. अगर 15 दिसंबर से शुरू होने वाले शीतकालीन सत्र को शामिल कर भी लिया जाए तो 31 दिसंबर तक छुट्टियों को हटाकर संसद सिर्फ 9 दिन और चलेगी. यानी साल भर में कुल सिर्फ 57 दिन.
Year Lok Sabha Rajya Sabha
1952 103 60
1953 137 100
1954 137 103
1955 139 111
1956 151 113
1957 104 78
1958 125 91
1959 123 87
1960 121 87
1961 102 75
1962 116 91
1963 122 100
1964 122 97
1965 113 96
1966 119 109
1967 110 91
1968 120 103
1969 120 102
1970 119 107
1971 102 89
1972 111 99
1973 120 105
1974 119 109
1975 63 58
1976 98 84
1977 86 70
1978 115 97
1979 66 54
1980 96 90
1981 105 89
1982 92 82
1983 93 77
1984 77 63
1985 109 89
1986 98 86
1987 102 89
1988 102 89
1989 83 71
1990 81 66
1991 90 82
1992 98 90
1993 89 79
1994 77 75
1995 78 77
1996 70 64
1997 65 68
1998 64 59
1999 51 48
2000 85 85
2001 81 81
2002 84 82
2003 74 74
2004 48 46
2005 85 85
2006 77 77
2007 66 65
2008 46 46
2009 64 63
2010 81 81
2011 73 73
2012 74 73
2013 75 75
2014 55 55
2015 72 69
2016 70 72
2017 48 48
संसद के बीते वर्षों के रिकॉर्ड को देखा जाए तो इससे पहले आम तौर पर इतने कम दिन संसद तभी चली जब देश में लोकसभा चुनाव हुए. जैसे 1999 में लोकसभा 51 दिनस 2004 में 48 दिन और 2014 में 55 दिन चली थी. वैसे 2008 में सबसे कम 46 दिन संसद चलने का रिकॉर्ड यूपीए सरकार के कार्यकाल में बना था. 2008 में संसद के तीन के बजाय सिर्फ दो सत्र हुए थे क्योंकि यूपीए सरकार ने अविश्वास प्रस्ताव आने के डर से तीसरा सत्र ही नहीं बुलाया था.
इस साल संसद सत्र छोटा होने का कारण क्या गुजरात का चुनाव है? इस पर कांग्रेस के नेता आरपीएन सिंह का कहना है, “इसी लोकतंत्र के मंदिर में माथा टेककर मोदी आए थे लेकिन अब गुजरात चुनाव की वजह से सत्र नहीं बुलाया जा रहा है. इनको डर है कि गुजरात की जनता संसद में गूंजने वाले सवालों से झूठे वायदों और भ्रष्टाचार का सच जान जाएगी.”
समाजवादी पार्टी के महासचिव रामगोपाल यादव ने भी गुजरात के चुनावों की वजह से सत्र देर में बुलाने को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साधा. रामगोपाल ने कहा कि सरकार को डर था कि अगर संसद चलेगी तो सरकार की पोल पट्टी खुल जाएगी और गुजरात चुनावों में इसका असर पडेगा.
लेकिन केन्द्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने इसी सवाल पर चुटकी लेते हुए कहा कि कुछ पार्टियां ऐसी हैं जिन्हें संसद में बैठकर ही गुजरात का चुनाव लडना है क्योंकि गुजरात की जनता उन्हें पूछ नहीं रही है. शीतकालीन सत्र छोटा होने पर नकवी कहते हैं कि विपक्ष के पास अब भी पूरा मौका है कि वो जितने सवाल चाहेें ससंद के भीतर उठा सकते हैं.