चर्च परिसर में हुई वेद पुराण की गूंज। अजमेर के सेंट एंसलम स्कूल के वार्षिकोत्सव में सनातन संस्कृति का गुणगान।

चर्च परिसर में हुई वेद पुराण की गूंज। अजमेर के सेंट एंसलम स्कूल के वार्षिकोत्सव में सनातन संस्कृति का गुणगान
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16 दिसम्बर की शाम को अजमेर के सुप्रसिद्ध सेंट एंसलम सीनियर हायर सैकंडरी स्कूल का वार्षिकोत्सव राजस्थान के स्कूली शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी के मुख्य आतिथ्य और हाॅकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के पुत्र अर्जुन अवार्ड विजेता अशोक चैहान की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। इस समारोह में कैथोलिक समुदाय के अजमेर प्रांत के धर्मगुरु बिशप पायस थाॅमस डिसूजा विशेष तौर से उपस्थित रहे। आमतौर पर यह माना जाता है कि मिशनरीज से जुड़े शिक्षण संस्थानों में ईसाई संस्कृति ही दिखाई जाती है, लेकिन 16 दिसम्बर को सेंट एंसलम स्कूल के समारोह में भारत की सनातन संस्कृति छाई रही। संभवतः स्कूल के इतिहास में यह पहला समारोह रहा होगा, जिसमें ऋषि-मुनियों, वेद-पुराण आदि को लेकर संगीत और नाटक की प्रस्तुति दी गई। अंग्रेजी पढ़ने वाले विद्यार्थियों को जिस तरह सनातन संस्कृति के बारे में समझाया गया, वे अपने आप में अद्भुत था। इसमें कोई दो राय नहीं कि देश हमारा नाटक के जरिए निर्देशक फादर चाल्र्स वास ने बच्चों के साथ बहुत मेहनत की। स्कूल के विद्यार्थियों ने भी ऋषि-मुनियों के भेष में घटनाओं को जीवंत कर दिया। विद्यार्थियों को यह बताया गया कि भारत की सनातन संस्कृति ही सर्वश्रेष्ठ है। इस माहौल को अजमेर क्षेत्र के ईसाई धर्मगुरु बिशप पायस डिसूजा ने अपने संबोधन में और ऊंचाईयां दीं। बिशप डिसूजा के संबोधन की सबसे खास बात यह थी कि उन्होंने बहुत शुद्ध और प्रभावी तरीके से हिन्दी का उपयोग किया। बिशप का कहना था कि कुछ लोग मजाक में कहते हैं कि हमारा देश राम भरोसे चल रहा है। मैं इस कथन को मजाक में नहीं बल्कि सही मायने में लेता हंू। भारत में विभिन्न धर्मों के लोग अपने-अपने धर्म के अनुरूप रहते हैं। यह कार्य ईश्वर की कृपा से ही संभव है। हम बंटकर नहीं बल्कि बांटकर खाने में विश्वास करते हैं। जब हमारे पास वेद-पुराण हैं तो हमें विज्ञान के लिए दूसरे की नकल करने की जरुरत नहीं है। उन्होंने एंसलम स्कूल के विद्यार्थियों से कहा कि अंग्रेजी पढ़े लेकिन अंग्रेज नहीं बने। उन्होंने माना की शिक्षा की प्रतिस्पद्र्धा के इस दौर में अंग्रेजी सीखना जरूरी है, लेकिन हम सबको अपने देश की संस्कृति से जुड़ा रहना चाहिए। हमारे देश की संस्कृति ही सबको साथ लेकर चल सकती है। बिशप डिसूजा ने सनातन संस्कृति को सामने रखकर जिस अंदाज में भाषण दिया उसको सुनकर समारोह में उपस्थित कैथोलिक समुदाय के प्रतिनिधि भी आश्चर्यचकित थे। समारोह में मिशनरीज स्कूलों के प्राचार्य आदि उपस्थित रहे। मालूम हो कि मिशनरीज स्कूलों के प्राचार्य आदि ईसाई धर्म की शिक्षा ग्रहण करने वाले ही बनते हैं। सेंट एंसलम स्कूल का संचालन केसरगंज स्थित सेंट एंसलम चर्च के परिसर में होता है। यह चर्च 100 वर्ष पुराना है। ऐसे में चर्च परिसर में भारत की सनातन संस्कृति की गूंज अपने आप में मायने रखती है।
मंत्री देवनानी ने भी की प्रशंसाः
समारोह के मुख्य अतिथि देवनानी ने भी स्कूल की कार्य प्रणाली की प्रशंसा की। देवनानी के लिए सेंट एंसलम स्कूल का समारोह कितना महत्व रखता था, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जोधपुर में दो दिन चली राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की उच्च स्तरीय बैठक के समाप्त होते ही सीधे अजमेर आ गए।
प्रिंसिपल मणिक्कम के सराहनीय प्रयासः
वार्षिक समारोह को नए अंदाज में प्रस्तुत करने में स्कूल के प्रिंसिपल सुसई मणिक्कम की सराहनीय भूमिका रही है। फादर मणिक्कम एक नई सोच के साथ ईसाई शिक्षण संस्थाओं में बदलाव के पक्षधर हैं। समारोह में अजमेर डायसिस के उपाध्यक्ष व फादर काॅसमाॅस शेखावत भी उपस्थित थे।

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