पूर्व मंत्री चौ. महेंद्र सिंह बसपा से निष्कासित*
*पूर्व मंत्री चौ. महेंद्र सिंह बसपा से निष्कासित*
गुरूवार, 4 जनवरी 2018
बसपा से दो बार विधायक रहे पूर्व मंत्री चौ. महेंद्र सिंह को बुधवार को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है। हालांकि पार्टी जोन इंचार्ज द्वारा उनके निष्कासन का कारण अनुशासनहीनता और सदस्यता शुल्क जमा न करना बताया जा रहा है, लेकिन सूत्रों की मानें तो पार्टी आलाकमान यह शिकायत पहुंची थी कि चौ. महेंद्र सिंह जल्द ही दूसरे दल का दामन थाम सकते हैं। इसके अलावा उन्होंने निकाय चुनाव में पार्टी के विरोध में काम किया। पिछले कुछ समय से वह पार्टी में ज्यादा सक्रिय भी नहीं थे। दूसरी ओर चौ. महेंद्र सिंह ने इन आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए अपने निष्कासन के बारे में अनभिज्ञता जाहिर की। इस घटनाक्रम से जिले के राजनीतिक गलियारों में खासी चर्चा है। बसपा अगले लोकसभा चुनाव की रणनीति अभी से बना रही है। ऐसे में बसपा सबसे पहले उन नेताओं की छंटनी कर रही है जिन पर उसे जरा भी संदेह है। कभी जिले में बसपा का सबसे बड़ा चेहरा रहे जयवीर सिंह ने भाजपा का दामन थामकर पार्टी से किनारा कर लिया था। तब से पार्टी आलाकमान इसे लेकर बेहद सतर्क है। सूत्रों की मानें तो पार्टी को यह खबर मिली थी कि पूर्व मंत्री चौ. महेंद्र सिंह पार्टी से जल्द किनारा कर सकते हैं। वे वर्ष 2002 व 2007 में लगातार कोल विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए। वह मायावती सरकार में राज्य मंत्री भी रहे। वर्ष 2012 में उन्हें तोे पार्टी ने टिकट नहीं दिया लेकिन उनकी पत्नी राजरानी को खैर से टिकट दिया। हालांकि राजरानी चुनाव हार गई थीं। सूत्रों की मानें तो निकाय चुनाव में ही पार्टी नेतृत्व को यह जानकारी मिली थी कि चौ. महेंद्र सिंह ने पिछले चुनावों में कोई खास रुचि नहीं ली। आलाकमान को यह भी पता चला कि निकाय चुनाव में उन्होंने दूसरे दलों के उम्मीदवारों का अंदरखाने समर्थन किया। पार्टी के आगरा- अलीगढ़ जोन इंचार्ज रणवीर सिंह कश्यप ने बताया कि पूर्व मंत्री महेंद्र सिंह को अनुशासनहीनता और पार्टी की सदस्यता शुल्क का धन जमा न करने की वजह से पार्टी से निष्कासित किया गया है। मैंने तो सबसे पहले थैली भेंट की थी : चौ. महेंद्र सिंह पार्टी से निष्कासित होने के बाद जब चौ. महेंद्र सिंह से इस बारे में पूछा गया तोे उन्होंने आश्चर्य जताया। उनका कहना था कि उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं है। किसी दल में जाने का विचार भी नहीं बनाया था। वह तो पार्टी के तब से सदस्य हैं जब से पार्टी बनी है। कांशीराम जब पहली बार लोकतांत्रित तरीके से पार्टी के अध्यक्ष बने, तब वह पार्टी के डेलीगेट मेंबर थे। सबसे पहले थैली भेंट करने वाले लोगों में वह शामिल थे। पार्टी ने उन्हें दिल्ली से 1993 में नसीरगंज विधानसभा का चुनाव लड़वाया। जबकि 1998 में मंगोलपुरी दिल्ली विस क्षेत्र से उन्हें चुनाव लड़वाया। तब वह दिल्ली में अपना कारोबार करते थे। उन्होंने पार्टी में कभी अनुशासन नहीं तोड़ा। सदस्यता शुल्क जमा न करने का आरोप भी गलत है। चौ. महेंद्र सिंह का कहना है कि उसके बाद उन्हें पार्टी ने अलीगढ़ की राजनीति में उतारा और वह दो बार विधायक चुने गए। हमेशा बसपा में ही रहे। पारिवारिक कारणों की वजह से वह कुछ समय से पार्टी के कामों में ज्यादा भाग नहीं ले सके तो इसकी जानकारी बहन जी को दी थी। अब अगले कदम के बारे में उनका कहना था कि अभी उन्हें अपने निष्कासन की जानकारी ही नहीं मिली है तो ऐसे में वह इस बारे में कैसे बता सकते हैं।