श्री मदभागवत कथा का आयोजन भव्य कलशशोभा यात्रा, उमड़ा आस्था का सैलाब
लखनऊ। हनुमान पुरी के गली नंबर 4 राजा विहार कॉलोनी में सात दिवसीय भागवत कथा का पांच मंदिरों के आशीर्वाद के साथ कलश यात्रा निकालकर पीले रंग के परिधान में महिलाओं ने निकाली कलश यात्रा।
परम पूज्य महाराज शिवदीप शास्त्री कथा वाचक के द्वारा श्रीमद् भागवत कथा का अनुसरण जनमानस ने प्राप्त किया। श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन अनिल कुमार तिवारी व सपना तिवारी ने किया। जिसका आयोजन मुख्यत:उनके बुजुर्ग माता-पिता रामकुमार तिवारी तथा शकुंतला तिवारी को पुण्य लाभ हेतु कथा सुनाने के प्रयोजन से किया गया । व्यास जी महाराज शिवदीप शास्त्री ने बताया की वैष्णो दर्शन को समर्पितभागवत पुराण हिन्दुओं के अट्ठारह पुराणों में से एक है। इसे श्रीमद्भागवतम् या भागवतम् भी कहते हैं। इसका मुख्य वर्ण्य विषय भक्ति योग है, जिसमें कृष्ण को सभी देवों का देव या स्वयं भगवान के रूप में चित्रित किया गया है उनके जीवन पर्यंत की विभिन्न लीलाओं को श्रवण व झांकी के माध्यम से दर्शाया जाता है। शब्दों के माध्यम से श्री विग्रह का दर्शन की श्रीमद् भागवत कथा के द्वारा किया जाता है। शब्द विग्रह के माध्यम से शुरू विग्रह के दर्शन। इसके अतिरिक्त इस पुराण में रस भाव की भक्ति का निरुपण भी किया गया है। परंपरागत तौर पर इस पुराण के रचयिता वेद व्यास को माना जाता है। कथा सुनने वाले को आज भी व्यास जी के नाम से ही संबोधित किया जाता है और उसे आसान को व्यास पीठ।श्रीमद्भागवत भक्तिरस तथा अध्यात्मज्ञान का समन्वय उपस्थित करता है। कहते हैं सात दिनों में जो भी भक्त कथा का श्रवण करता है उसे भगवान कृष्ण का आशीर्वाद भवसागर से पार होने का आधार मिलता है। ग्रस्त जीवन में भवसागर से निवृत्ति के मार्ग क्यों ले जाती श्री विग्रह।
क्षेत्र की सैकड़ों महिलाओं ने इस आयोजन में अपना योगदान कलश स्थापित कर दिया ।कथा का प्रारंभ 19 मार्च से होकर 25 मार्च को समापन 26 मार्च को भव्य भंडारे का आयोजन किया गया।
व्यास जी ने सभी को बताया जीवन के अनेक जन्मों के पुण्य जागृत होते है तो कथा श्रवणव आयोजन सुलभ होता है। ईश्वर की विशेष अनुकंपा से ही यह अवसर मनुष्य के जीवन में सुलभ हो पाता है। मनुष्य को आत्मिक और भौतिक जगत के पापों से मुक्ति मिलती है। इसीलिए दर्शन से अधिक महत्व सत्संग का बताया गया है।
स्वयं भागवत में कहा गया है-
सर्ववेदान्तसारं हि श्रीभागवतमिष्यते।
तद्रसामृततृप्तस्य नान्यत्र स्याद्रतिः क्वचित् ॥
श्रीमद्भाग्वतम् सर्व वेदान्त का सार है। उस रसामृत के पान से जो तृप्त हो गया है, उसे किसी अन्य जगह पर कोई रति नहीं हो सकती। अपने बड़े बुजुर्गों के आशीर्वाद के साथ सभी को अपने जीवन में एक बार श्री मद भागवत महापुराण की कथा को जरूर करना व सुनना चाहिए।