आगरा बच्चों को लील रहा नशा खतरे में भविष्य
* बच्चों को लील रहा नशा देश के भविष्य पर खतरा
*शहर में सात से बारह साल के बच्चे हो रहे हैं नशे के शिकार*
*खुलेआम बेच रहे मौत के सौदागर नशे का सामान*
*नही कोई प्रतिबंध?*
*प्रसाशन का नही कोई ध्यान*
*ज्यादातर गरीब परिवार के बच्चे है गिरफ्त में*
*आगरा* देश भविष्य पूरी तरह नशे की गिरफ्त में शहर में जगह जगह मौत के सौदागर नशे के समान की खुले आम बिक्री कर रहे है प्रशासन इस ओर कोई ध्यान नही दे रहा।
नशा कोई भी हो, जब इंसान इसकी गिरफ्त में पूरी तरह से आ जाता है, तो वह उसे छोड़ नहीं पाता और नशे की चाहत में वह कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। ऐसा ही नजारा इन दिनों आगरा शहर के सैकड़ों अनाथ और बेसहारा बच्चों का है, जो दिन भर रेलवे स्टेशन, बस स्टेण्ड और अन्य सार्वजनिक स्थलों पर कूड़ा-कचरा बीनकर शाम को जो भी पैसा मिलता है, उससे अपने नशे की पूर्ति कर भूखे ही सो जाते हैं।
सरकार ने अनाथ और बेसहारा बच्चों को मुख्यधारा से जोडऩे और उन्हें शिक्षा प्रदान करने के लिए अनेक योजनाएं संचालित कर रखी हैं लेकिन प्रशासनिक स्तर पर देखा जाए तो योजनाओं का सही प्रकार से क्रियान्वयन न होने के कारण यह योजनाएं कागजों में सिमट कर रह गई हैं।
उल्लेखनीय है कि शहर में इन दिनों सात से बारह साल के बच्चों में व्हाइटनर, सिलोचन और आयोडेक्स के नशा का प्रचलन तेजी से हो रहा है। इस नशे के लिए यह बच्चे कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। जिस उम्र में इनके हाथों में कॉपी और किताब होना चाहिए, उस उम्र में इनके हाथों में व्हाइटनर और सिलोचन तथा आयोडेक्स की शीशी नजर आती है। यह देखकर ऐसा लगता है मानो प्रशासन पूरी तरह से कुंभकर्णी नींद में सो सा गया है। कहने को तो सरकार ने बेसहारा, अनाथ, गरीब बच्चों की शिक्षा-दीक्षा और उनके भरण-पोषण के लिए अनेक योजनाएं संचालित की हैं, पर जमीनी स्तर पर योजनाओं की सही प्रकार से मानीटरिंग न होने के कारण अनाथ और बेसहारा बच्चों तक इन योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच पाता है। मजबूरन यह बच्चे कचरे के ढेरों में अपने बचपन को बर्बाद करने पर आमदा हैं। जब यह बच्चे कचरे के ढेरों में से कूड़ा-कचरा उठाते हैं, उसी समय इन्हें ऐसी संगत मिल जाती है, जो इन्हें कहीं का नहीं छोड़ती है औऱ
बेसहारा और अनाथ होने के साथ बाल्यावस्था में ही बड़े नशेड़ी बन जाते हैं। अहम बात यह है कि इन बच्चों के लिए शहर में अनगिनत स्वयंसेवी संस्थान व संगठन कार्यरत हैं, पर आज तक किसी संस्था या संगठन ने इनकी सुध नहीं ली है। इस कारण यह बच्चे नशे के दल-दल में डूब जाते हैं और चाहकर भी उस दल-दल से बाहर नहीं निकल पाते।
जहां टायर में पंचर बनाने वाली सोल्यूशन ट्यूब को बच्चे नशे की सामग्री के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं। बच्चे इस सोल्यूशन को एक रुमाल में लेकर उसे मुंह से सूंघते हैं और नशे में डूब जाते हैं। नशे का बाजार आगरा शहर में बदस्तूर खुलेआम जारी है ।
*ऐसे नशीले पदार्थों पर रोक लगनी चाहिए*
*व इस तरह के नशीले सामान को बेचने बालो को जेल में डालना चाहिए*
जिस प्रकार सरकार ने अल्कोहल युक्त कई दवाइयों को प्रतिबंधित कर दिया है। ठीक उसी प्रकार सिलोचन, आयोडेक्स और व्हाइटनर जैसे नशीले पदार्थ को भी सरकार प्रतिबंधित कर देना चाहिए व बेचने बाले दुकानदार के खिलाफ कार्यबाही कर जेल में डालना चाहिए।
तब कही जाकर बेसहारा बच्चों का बचपन संवर सकता है।
*स्वयंसेवी संगठन भी आगे आएं*
समाज सेवा के लिए शहर की समाजसेवी संस्थाएं और संगठन बड़ी-बड़ी डींगें मारते हैं, उन्हें भी इस ओर ठोस कदम उठाकर ऐसे बच्चों को मुख्य धारा से जोडऩे और उनके खान-पान का ख्याल रखना चाहिए, जिससे इन्हें नशे के दल-दल में फसे बच्चो को बचाया जा सके।
*नशे में रहने के कारण बड़े होकर बन जाते हैं अपराधी*
बचपन में जहां यह बच्चे कूड़ा-कचरा बीनकर अपने नशे की पूर्ति करते हैं वहीं बड़े होकर इनके नशे का तरीका भी बदल जाता है और स्मेक, हेरोइन आदि का नशा करने लगते हैं। स्मैक और हेरोइन का नशा महंगा होता है। इस स्थिति में यह बच्चे अपने नशे की पूर्ति के लिए पहले चोरी से करते हैं और जब चोरी से काम नहीं चलता है तो वह बड़े अपराधी बनकर समाज के लिए मुसीबत बन जाते हैं।
अब यह बात किसी से छुपी नहीं है कि ये बच्चे तंबाखू, गुटखा से लेकर गांजा, अ़फीम, चरस, हेरोईन जैसे घातक मादक पदार्थो का सेवन करते हैं. इन बच्चों के माता-पिता और वयस्क परिवारजन रोजी-रोटी की जुगाड़ में व्यस्त रहते हैं और वे बच्चों पर कोई ध्यान नहीं देते हैं. यहां तक कि सात वर्ष की उम्र में ही बच्चे भी स्कूल छोड़कर कचरा बीनने, होटलों, ढाबों में मज़दूरी करने या बाज़ार में फेरी लगाकर सामान बेचने का काम करने लगते हैं और वे अपनी कमाई से मादक पदार्थ खरीदने में सक्षम हो जाते हैं.
बच्चों में नशा़खोरी की लत का अध्ययन करने वालों का कहना है कि ज़्यादातर बच्चों को नशे की लत उनके वयस्क या हमउम्र नशा़खोरों के ज़रिए ही लगती है. परिवार की उपेक्षा के कारण ये भोले-भाले बच्चे नशा कराने वाले को ही अपना मित्र और सच्चा हमदर्द मान लेते हैं और नशे की आदत में पड़कर हर तरह के शोषण का शिकार हो जाते हैं.
*इन क्षेत्रों में है ज्यादातर संख्या*
यह बाल नशेड़ी वैसे तो शहर भर में आसानी से कहीं भी मिल जाएंगे, पर बहुतायत संख्या में रेलवे स्टेशन, बस स्टेण्ड, प्रमुख मंदिरों और वैवाहिक स्थलों पर नजर आते हैं। विवाह समारोहों में मौका देखकर यह बड़ा हाथ मारने से भी नहीं चूकते हैं।